௳॥• अंकलोकः॥

कालः। गुरुवारः १९४५:१२:शु॰:१२ ॥१७४॥

देशमानम्। प्र॰। एक माराथोन दौड में कितने योजन। क्र॰। (कथय (देशमानान्तरण (घ्नसहस्र (अंक "४२:१९५"))))। फ॰। (३ योजन ९७३ दण्ड ३५:१८१८२ अंगुल) ॥१६३॥

पाठ्य। सूचीवर्तक क्रमलेख भाषा। समस्याओं को सुलझाने की विधि जो अन्य प्रचलित संगणक भाषाओं से थोडा भिन्न है। आरम्भ से ही भाषा को सरलतम तथा शक्तिशाली बनाने का प्रकल्प था। अविशेषज्ञ के लिए भी सुलभ। पूर्णतः प्रश्नोत्तरी रूप में तथा पर्याप्त उदाहरण समेत। लगभग पचास वर्ष पुराना पर नवीनतर संस्करण उतना सरल नहीं ॥१६२॥

जालावरोहण। क्र॰।(अग्र (सूत्रविघटय (जालग्राहय "अंकलोक.भारत/८")))। फ॰। "पाणिनीयव्याकरणसूत्राणि।" ॥१६०॥
 
एकदावर्तनम्। एकदा अर्थात एकस्मिन्काले॥ संचारयन्त्र आजकल बहुवर्तक होते हैं। क्या क्रमलेखों में सभी उपलब्ध क्रमवर्तकों के प्रयोग से क्रमगति बढा सकते हैं॥ क्र॰। (संख्या (क्रमवर्तकगणन))। फ॰। "८"। क्र॰। (समयमान (क्रमलेख (प्रतिकरण विभेदाः (सूचीरचय (अंक "८") "१४०९६"))))। फ॰। वास्तविक। (१ काष्ठा १५ निमेष)। क्र॰। (समयमान (क्रमलेख (एकदाप्रतिकरण विभेदाः (सूचीरचय (अंक "८") "१४०९६"))))। फ॰। वास्तविक। (२ काष्ठा ३ निमेष)॥ अपेक्षित परिणाम के विपरीत एकदा करण के प्रयोग से यह अधिक समय लेने लगा। ह्म्फ। शोधनीय ॥१५९॥

कालमात्रा। प्र॰। एक काष्ठा में कितने निमेष। उ॰। अठारह। इसपर कुछ ग्रन्थों में मतभेद है। परन्तु सिद्धान्तशिरोमणि में भी निमेषैर्धृतिभिश्चकाष्ठा
अर्थात अठारह दिया गया है। अतः यही प्रयुक्तव्य॥ यूनिक्स शैली यन्त्र संचालनक्रमकों में अपना ही यूनिक्स युग उपलब्ध होता है। इसमे कितने दिन बीत चुके। क्र॰। (समयान्तरण (यन्त्रसमय))। फ॰।("१९७०६" अहोरात्र "१०" मुहूर्त "०" कला
"९" काष्ठा "१" निमेष) ॥१५८॥

क्रमलेखकोष

क्रमलेखन। संख्याविभेदाः।(निरूपय (विभेदाः ख)(संख्या (आचर घ्न (एकादि (अंक ख)))))॥ उ॰। (सूची (विभेदाः "१०") (विभेदाः "४"))॥ फ॰। ("३६२८८००" "२४") ॥१५७॥

लीलावती॥ संख्याविभेदाः। स्थानान्तमेकादिचयाङ्कघातः संख्याविभेदानियतैः स्युरंकैः॥ उ॰। पाशांकुशाहिडमरूककपालशूलैः खट्वांगशक्तिशरचापयुतैर्भवन्ति॥ अन्योन्यहस्तकलितैः कतिमूर्तिभेदाः शंभोर्हरेरिवगदारि सरोजशंखैः॥ न्या॰। स्थानानि १० जातामूर्तिभेदाः शिवस्य ३६२८८०० एवं हरेश्च २४ ॥१५६॥

अनुवर्तन। पुनर्वर्तन मूलविधि भाषाओं में अनुवर्तन का क्या महत्व। बहुत समय बचा सकता है कुछ प्रकरणों में॥ कार्य उदाहरण स्वपाठ्य स्खीम जालपुस्तक से ॥१५५॥
 
परिव्यवस्था। अथवा परितन्त्र। किसी भी क्रमलेख भाषा के लिए विस्तृत परिव्यवस्था उपलब्ध होना आवश्यक है। गनू मुक्त क्रमलेख जगत में लगता है कि गयिल भाषा में श्रमनिवेश किया जा रहा है। इसके परिणामतः ग्वीक्स संचालक बना रहे हैं जो पुनरुत्पादकता के द्वारा क्रमक सुरक्षा का विश्वास दे सकता है। गनू संस्था के चालीस वर्ष में शून्य से वर्तमान व्यापक उपयोगिता की यात्रा पठनीय ॥१५४॥
 
सूक्ष्मता। दक्षता का संकेतक माना जाता था क्रमलेख जगत में कुछ ही वर्ष पूर्व ॥१५३॥

कालः। रविवारः १९४५॰६॰शु॰९ ॥१४६॥

क्रमः। नक्रमेणविनाशास्त्रं नशास्त्रेणविनाक्रमः॥ वाग्भट के रसरत्नसमुच्चयः से ॥१३९॥

नमस्कार ॥१॥